"गुप्तरत्न "
"भावनाओं के समंदर मैं "
मैंने भी लोगो की बेईमानी देखी है ,
खुदको बचाने इनकी दिमागी शैतानी देखी है ।
बैठे है, भविष्य बनाने नन्हे फूलो का,
इन मालियों की,हमने गन्दी बागवानी देखी है ।
सूरज हूँ,छुपेगी चमक बस दो घडी मेरी ,
इसके लिए ग्रहण की इतनी खींचातानी देखी है ।
सच जो छुपता तो,झूठ की पूजा होती,
खुदको भगवान बनाने,हमने लोगो की मनमानी देखी है ।
साबित करना क्या सच को इतना भी यूँ,
झूठ छिपाने,हमने लोगो की चाल सयानी देखी है ॥
शुरू ही हुई न ख़तम अभी तक "गुप्तरत्न"
बिजली बादल की हमने भी अज़ब कहानी देखी है ॥
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