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क्या करे की अब कुछ समझ आता नहीं , छाया है कोहरा घना ,की कुछ नज़र आता नहीं , चले थे कहाँ ,और पहुंचे है कहाँ ,पर आकर हम, दुरी है बराबर ,लौंटेंगे कैसे ,? आगे चला जा ता नहीं ,..... क्या करे की अब कुछ समझ .... हम करते रहे दिल की और, वह सुनते रहे दिमाग की, की उनने जो किया वह हमसे किया जाता नहीं , हमारी चाहत है अलग और, अलग उनकी प्यास है , की मुहब्बत मैं ,हमसे अब ये समझौता किया जाता नहीं, क्या करे की अब .......... जलाने  के पहले सोचा न था ,की तपन आएगी हम तक भी, आगाज़ तो कर दिया हमने, अज़ाम अब दिया जाता नहीं, हर ज़ख़्म लिया दिल पर खुद अपने हाथों से, की अब इलज़ाम किसी पर दिया जाता नहीं , क्या करे की ........ चाहत है क्या? क्या बताएं हम ए ' रत्न  , की हमसे अब आगे कुछ कहा जाता नहीं, क्या करे की अब कुछ समझ आता नहीं............. गुप्त रत्न

#गुप्त रत्न " क्या लिखना है "

कोरे है ये पन्ने कब से ,अब इनमे लिखना है , जो कुछ रह गया अनकहा वो सब लिखना है // कितने ज़ख़्म दिए तूने,कितनी घायल हूँ मैं, बता न सकीं अब तक,तुझको वो लिखना है // कितना दर्द है अभी तक बाकि,है उन ज़ख्मो का, दिए जो तेरे अल्फाजों की धार ,ने वो लिखना है //   मेरी दिल की पाकीजगी तो ,तेरी समझ की हद मैं ही नहीं , तेरी औकात तो नही की समझ सके,तू फिर भी लिखना है // ए मालिक तुझ पर खुदको छोड़कर,सब छोड़ दिया "रत्न" ने, अब राह दिखाता जा,बता दे मेरी किस्मत मैं क्या लिखना है // " © "