गुप्तरत्न शब्दों मैं अपने रह जाऊंगा।
कहा था मैंने,शब्दों मैं अपने रह जाऊंगा।
पढोगे जब जब ,मैं तब नज़र मैं आऊंगा।।
माना हर क्षण मेरा जाना पीड़ा तुमको देता है।
दर्द वियोग का ह्रदय तुम्हारा वर्षो से ये सहता है।।
तुम्हारे ह्रदय मैं,प्रतिबिम्ब है मेरा,कब से
झांककर देखो अंतरमन मैं मिल जाऊंगा।
कहा था शब्दों मैं.........
माना मेरा जाना तुम्हे दर्द बहुत देता है,।
ईश्वर जो चाहता है वही परीक्षा लेता है।।
ये रूप,रंग ,शब्द ,सोच सब तुमसे पाया था।
सब वहां छोड़कर मैं इस दुनिया मैं आया था।
तुम खुद मैं देखो ,मैं मिल जाऊंगा।
नही आऊंगा,वापस पर सदा तुम ही रह जाऊंगा।।
तुम यदि तुम दुखी रहे ,तो मैं स्वयं को कैसे यहाँ खुश रख पाउँगा ।।
कहा था मैंने शब्दों मैं मिल जाऊँगा,पढोगे जब-2 तब नज़र आउंगा ।।
कोशिश की है "रत्न" ने आपकी भावनाओ को छूने की,
कवी ह्रदय कहता है,शायद मैं कलम से अपनी आपका दर्द छु पाउँगा।।
"गुप्त रत्न""©"
पढोगे जब जब ,मैं तब नज़र मैं आऊंगा।।
माना हर क्षण मेरा जाना पीड़ा तुमको देता है।
दर्द वियोग का ह्रदय तुम्हारा वर्षो से ये सहता है।।
तुम्हारे ह्रदय मैं,प्रतिबिम्ब है मेरा,कब से
झांककर देखो अंतरमन मैं मिल जाऊंगा।
कहा था शब्दों मैं.........
माना मेरा जाना तुम्हे दर्द बहुत देता है,।
ईश्वर जो चाहता है वही परीक्षा लेता है।।
ये रूप,रंग ,शब्द ,सोच सब तुमसे पाया था।
सब वहां छोड़कर मैं इस दुनिया मैं आया था।
तुम खुद मैं देखो ,मैं मिल जाऊंगा।
नही आऊंगा,वापस पर सदा तुम ही रह जाऊंगा।।
तुम यदि तुम दुखी रहे ,तो मैं स्वयं को कैसे यहाँ खुश रख पाउँगा ।।
कहा था मैंने शब्दों मैं मिल जाऊँगा,पढोगे जब-2 तब नज़र आउंगा ।।
कोशिश की है "रत्न" ने आपकी भावनाओ को छूने की,
कवी ह्रदय कहता है,शायद मैं कलम से अपनी आपका दर्द छु पाउँगा।।
"गुप्त रत्न""©"
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