यकीं क्या वक्त का,जो है आज ये पल "कल"न हो










ये मुहब्बत अधूरी ही रहे,कभी मुकम्मल न हो,

चन्द अशआर अधूरे ही अच्छे है,कभी पूरी ये ग़ज़ल न हो,

तुझको देखकर मचलती रहे ये धड़कने यूं,
 ये बजती ही रहे,इस धुन में किसी का कोई ख़लल न हो,

आप हमे समझे , और हम आपको समझते रहे,
बस इस समझ में किसी और की समझ का दखल न हो,

कभी भी खत्म न हो,ये अजीब सा सफ़र साथ तेरे
उलझे ही रहे हम ,अच्छा है इस उलझन का कोई हल न हो,

जी ले जिंदगी को जब भी मिले ये ,"गुप्तरत्न"
यकीं क्या वक्त का,जो है आज ये पल "कल"न हो 

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Nahi mitegi mrigtrishna kasturi man ke andar hai

Guptratn: पिता