मज़हब कहाँ सिखाता है,आपस में बैर करना ,
मज़हब कहाँ सिखाता है,आपस में बैर करना ,
ये तो इंसान मज़हब को सिखा रहा है ,
तुम बुरो हो और हम अच्छे है ,
मजहब नही इंसान एक दुसरे को बता रहा है ,
शहरो की रौनक खो गई,
सड़के भी सुनसान हो गई ,
चुप है सब, महफिले भी वीरान हो गई ,
बहुत खेला है , सबने कुदरत से देखो,
अब वो, ऊपर बैठा अपना खेल दिखा रहा है ,
न वक्त का भरोसा है , न साँसे ही अपनी है ,
कहाँ चलता है किसी का जोर उसके आगे,
में हूँ अब भी मौजूद ,वो सबको समझा रहा है ii
तुम बुरो हो और हम अच्छे है ,
मजहब नही इंसान एक दुसरे को बता रहा है ,
शहरो की रौनक खो गई,
सड़के भी सुनसान हो गई ,
चुप है सब, महफिले भी वीरान हो गई ,
बहुत खेला है , सबने कुदरत से देखो,
अब वो, ऊपर बैठा अपना खेल दिखा रहा है ,
न वक्त का भरोसा है , न साँसे ही अपनी है ,
कहाँ चलता है किसी का जोर उसके आगे,
में हूँ अब भी मौजूद ,वो सबको समझा रहा है ii
special thought for current situation."©" |
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