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शिक्षा में सादगी और विश्वास -गुप्तरत्न

"गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं " शिक्षा में सादगी और विश्वास जब तक न होगा  व्यहवहार आपका सादा , जब तक न पहुंचोगे ह्रदय द्वार तक ,न खुलेगा विद्यार्थी के मन का दरवाज़ा ॥ होगी न शिक्षा पूरी ,न होगा दायित्व हमारा पूरा , रह जाएगी शंकाएं ,रहेगा विश्वास हम पे आधा ॥ बहने दो पानी को खुलकर, न बांधो इसका, बाल -ह्रदय की उन्मुक्त भावनाएं बहने दो न बनो इनमे बाधा॥ तुम बनो गुरु ऐसे जिसका,ह्रदय सरल हो और बाल मित्र हो , थोड़ा डाँटो कभी उनको ,कभी खेलो उनके संग भी ज्यादा ॥ कह दो सारी बातें खेल खेल में ,दे दो मन्त्र सारे पाठों के , कभी बनो तुम कृष्णा -सुदामा ,कभी सुनाओ पुराने आदर्शो की गाथा ॥

आपके लिए गुप्तरत्न : इक बार खोना है यूँ, तुममे की खुद को भी...

गुप्तरत्न : गुप्तरत्न : इक बार खोना है यूँ, तुममे की खुद को भी... : गुप्तरत्न : इक बार खोना है यूँ, तुममे की खुद को भी खुद पा न सक... : इक बार खोना है यूँ, तुममे की खुद को भी खुद पा न सकें, छुप जाएँ तेरी बा... "गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं "

गुप्तरत्न : इसके लिए ग्रहण की इतनी खींचातानी देखी है ।हिंदी कवितायेँ,

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गुप्तरत्न : इसके लिए ग्रहण की इतनी खींचातानी देखी है ।: इसके लिए ग्रहण की इतनी खींचातानी देखी है । मैंने भी लोगो की बेईमानी देखी है , खुदको बचाने इनकी दिमागी शैतानी देखी है । बैठे है, भविष्य बनाने नन्हे फूलो का, इन मालियों की,हमने गन्दी बागवानी देखी है । सूरज हूँ,छुपेगी चमक बस दो घडी मेरी , इसके लिए ग्रहण की इतनी खींचातानी देखी है । सच जो छुपता तो,झूठ की पूजा होती,  खुदको भगवान बनाने,हमने लोगो की मनमानी देखी है । साबित करना क्या सच को इतना भी यूँ, झूठ छिपाने,हमने लोगो की चाल सयानी देखी है ॥ शुरू ही हुई न ख़तम अभी तक "गुप्तरत्न" बिजली बादल की हमने  भी अज़ब कहानी देखी है ॥ "गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं " गुप्तरत्न हिंदी कवितायेँ, 

गुप्तरत्न : मुझे दोस्ती से डर लगता है,मुझे मुहब्बत से डर लगता ...

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गुप्तरत्न : मुझे दोस्ती से डर लगता है,मुझे मुहब्बत से डर लगता ... :  मु झे दोस्ती से डर लगता है, मुझे मुहब्बत से डर लगता है , डरती हूँ जुड़ने से लोगो से , क्यूंकि मुझे अलग होने से डर लगता है ॥             दीखते नहीं है चेहरे लोगो के ठीक से ,               इसलिए मुझे अंधेरो से डर लगता है                आँखे चौंधिया जाती है, इसलिए               मुझे तेज उजालों से डर लगता है ॥ मुददते हुई ठिकाना छोड़े हुए , की मुझको अब बसने से डर लगता है , आवारगी का आलम भी रहा गज़ब, की राहों पर ही घर लगता है, की मुझे अब घर से डर लगता है,॥                                            मुझे जुड़ने से डर लगता है ................... झुका देती है हर किसी के आगे, की मुझे ऐसी गरीबी से डर लगता है, हर शह खरीदने की चाहत करें की, मुझे ऐसी अमीरी से डर लगता है ॥                                         बदल जाते है मायने बातों के,                                            ऐसे झूठ से डर लगता है,                  

पर सागर की फ़ितरत कही टिकता नही था।।

"गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं " गर बिकता तो खरीद लेते हम , पर हमने भी वो पसंद किया जो बिकता नही था।। हाल -ए-दिल बयां भी मुश्किल ही रहा , दर्द तो था पर घाव दिखता नही था। बरकतो की भी बारिश सी रही,  बढता रहा दर्द घटता नही था ।। चाहता तो डूब जाता या डुबा देता "रत्न" पर सागर की फ़ितरत कही टिकता नही था।।

अपनी कद्र खुदको बता रहे है हम

"गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं " अपनी कद्र खुद्को बता रहें है,हम की थोडा वक़्त अब खुद्के साथ बिता रहे है हम l तुझे न सोचूं ये मेरे वश में तो नही ,  फिर भी खुद्को समझा रहे हम।। डूबने की चाह्त तो थी  हमको "रत्न" लेकिन फिर भी खुद्को तैरना सिखा रहे है हम।। इल्जाम क्यूँ दूं, तुमको किसी बात का, कि खुदको तो खुद ही सता रहे है हम