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"गुप्त रत्न" हिंदी कवितायें- हौसला

हौसला खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल , गर हौसला बुलंद है, खुलेंगे दरवाज़े किस्मत के , जो अब तलक बंद है , तेज़ कर आग तू ये ललक की , जो पडी चली अब मंद है , खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल ......... अभी तू सह दर्द ये सफर का , मंज़िल आ जाएँ फिर आनद ही आनंद है , मत घबरा अभी "रत्न " तू हार से , देखना खुद ब-खुद हट जाएगी , जीत पर पड़ी जो धुंध है , खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल , गर हौसला बुलंद है-
हमने मान लिया कहना हालातो का कुछ नहीं हासिल कोरी बातों का , श्वेत-श्याम चुना है ,खुद मैंने ही , अपराध क्या, इसमें रंग सातो का देर कर दी उठने मैं ,दोपहर की नींद से , मिला अँधेरा ,गहना है जो रातों का , मैं चली हूँ सच -ईमान की राह पर , डर क्यों ?टूटने से रिशते -नातों का , "रत्न" को गिरने मत देना ए-मालिक , संभालेंगे जो,क्या भरोसा उन हाथों का? जोड़ सको तो जोड़ लो प्यार जीवन मैं ब्याज अच्छा है ,इन   बैंक के खातों का ,
आओ पढ़े हम,इस आज़ादी की वो गाथाएं , जिनको पाने जाने, लांघी है कितनी ही बाधाएं, ये रंग बिरंगा सा, जो तुमको दीखता है , तिरंगा, ना जाने कितने वीरो के लहू ने है ,इसको रंगा, ये राष्ट्रध्वज, ये राष्ट्रगीत और ,राष्ट्रचिंह ये राष्ट्रगान, यूं ही नहीं मिला हमको आज ये सम्मान, काली स्याही मैं खोजो, तुमको उजला अतीत मिलेगा, तब तुम हृदय से दे सकोगे इन्हें सच्चा मान, आओ पढ़ें हम आज़ादी की वो गौरव कथाएं, जिनके मुख्य किरदारों मैं थे ,जाने कितने वीर और वीरांगनाये, करो महसूस उन वीरो के मर्म ,को जिनकी थी ये व्यथाएं, आओ पढ़े हम आज़ादी की वो कथाएं!

सबसे मिलते मिलते सिखा मैंने

"गुप्त रत्न " सबसे मिलते - मिलते सीखा मैंने भी , कभी खुदसे मिलना भी अच्छा होता है । दुनिया की भीड़-भाड़ और शोर से भी . शांत मन और एकांत भी अच्छा होता है । बहुत से रिश्ते मिले उनसे सीखा भी , अपने परिवार मैं रहना भी अच्छा होता है । गुरु से कम नहीं अनुभव जीवन के , शिक्षा लेकर चलना भी अच्छा होता है । शिकायतों से कुछ नहीं बदलने वाला , कभी खुद को बदलना भी अच्छा होता है ।
सबसे मिलते - मिलते सीखा मैंने भी , कभी खुदसे मिलना भी अच्छा होता है । दुनिया की भीड़-भाड़ और शोर से भी . शांत मन और एकांत भी अच्छा होता है । बहुत से रिश्ते मिले उनसे सीखा भी , अपने परिवार मैं रहना भी अच्छा होता है । गुरु से कम नहीं अनुभव जीवन के , शिक्षा लेकर चलना भी अच्छा होता है । शिकायतों से कुछ नहीं बदलने वाला , कभी खुद को बदलना भी अच्छा होता है ।
 "गुप्त रत्न " ये वक़्त तो गुजरने दो ,ये ... : ये वक़्त तो गुजरने दो ,ये उम्र तो जरा ढलने दो , देखूंगी प्यार तेरा ,मेरा ये रंग तो जरा उतरने दो , बड़ी बेपरवाह हो...
ये वक़्त तो गुजरने दो ,ये उम्र तो जरा ढलने दो , देखूंगी प्यार तेरा ,मेरा ये रंग तो जरा उतरने दो , बड़ी बेपरवाह होती है ,जवानी की ये नदियां , तैरना तुम ,इनका पानी तो जरा उतरने दो . अभी तो ये आइना मुस्कुराता है मुझको देखकर , देखूंगी तेरी भी आँखों मैं अपना ये रूप . इन आइनो को तो जरा मुझसे मुकरने दो , तेरे कांधो पर नहीं ज़िम्मेदारिया अभी , मेरी आज़ादियों पर नहीं पाबंदिया अभी , देखूंगी बेचैनियों को, हक़ीक़त बताएगी सब , इन पर बोझ और पाबंदिया तो बढ़ने दो , अभी सब धुंधला है प्यार  के इस कोहरे मैं , साफ नज़र आएगा ,जरा धुप तो खिलने दो

ग़ज़ल "गुप्त रत्न "हिंदी कवितायेँ : gupt ratn hindi kavityanतेरा   कांधा  , गर यूँ ही...

"गुप्त रत्न "हिंदी कवितायेँ : तेरा   कांधा  , गर यूँ ही... :  तेरा   कांधा  , गर यूँ ही रहेगा , मेरे आंसुओ को ठिकाना मिलेगा , तू यूँ ही  रह मेरे साथ पल पल ,  हँसते रहने का ...
तेरा   कांधा  , गर यूँ ही रहेगा , मेरे आंसुओ को ठिकाना मिलेगा , तू यूँ ही  रह मेरे साथ पल पल ,  हँसते रहने का  बहाना मिलेगा , तेरी मुहब्बत रहे ,यूँ ही महकती ,  तेरे दिल मैं तो ठिकाना मिलेगा , थोड़े वक़्त की रहगुज़र ही सही , तब तक तो मुझको आशियाना मिलेगा , मौसम को  तो हक़ है बदलने का ,  तू न बदला गर  तो हर मौसम यूँ सुहाना मिलेगा गुप्त रत्न'