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#guptratn:अलाव

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पहले घरो के आगंन में जलता अलाव था , साथ बैठता था परिवार ,उसमे एक लगाव था , भूनकर खाते थे मटर के दाने उसमे, नही मिला कही वो स्वाद ,उस खाने में एक चाव था , अब अलग अलग घर है ,घरों में कमरे भी अलग है , है सब अपने , है  साथ , फिर भी सब अलग है , रूम हीटर ने ले ली जगह अब कहाँ अलाव जलते है , किसने ,किसको कब क्या कहा ,  दिलों में बस ये घाव पलते है , अब कहाँ होती है ,वो सुबह,जहाँ चाय मिलकर सब पीते थे , काटते नही ,वक़्त को  लगता है मानो वो जीते थे , कहाँ होती है वो सुबह , अब तो ओ बस जिम्मेदारियों के तले  दिन ढलते है , किसने किसको कब क्या कहाँ ,दिलों में ये ही घाव पलते है ......., कसूर नही किसी का, कुछ जरूरतें बढ़ी और कुछ लालच भी , हो गए आधुनिक ,बन गया  शहर  जो पहले गावं था, वरना पहले घरों में जलता अलाव था ...............साथ बैठता था परिवार ...