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#गुप्तरत्न : अज़ब किरदार था उसका भी किताब मैं ,आखिरी पन्ने तक उस...

गुप्तरत्न : अज़ब किरदार था उसका भी किताब मैं ,आखिरी पन्ने तक उस... : अज़ब किरदार था उसका भी किताब मैं , आखिरी पन्ने तक उसका नाम आता रहा ll      इश्क मैं जुबां का काम कम होता है , ... "गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं "

आपके लिए आते है अल्फ़ाज़ तुमको देखकर "रत्न"

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"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं " कभी शर्ते तो कभी उलझन , कभी शर्ते तो कभी उलझन , अजीब दास्ताँ रही, कभी लगा शुरू हुई कभी ख़त्म ll भरने का नाम ही नहीं लेते , बड़े गहरे है ,दिए हुए वो मुझे तेरे सारे ज़ख्म ll अभी तो शुरुवात है लज्ज़त की , देखेंगे जानेमन कब तक कर सकोगे  तुम इसे हज़म ll आते है अल्फ़ाज़ तुमको देखकर "रत्न"  सच है , तुम्हारे ही है अब  ये गीत ग़ज़ल और ये नज़्म ll 

गुप्तरत्न : बिखरी ज़ुल्फे,गोरे गाल, और वो उसकी आँखे,उफ्फ कयामत...

गुप्तरत्न : बिखरी ज़ुल्फे,गोरे गाल, और वो उसकी आँखे, उफ्फ कयामत... : बिखरी ज़ुल्फे,गोरे गाल, और वो उसकी आँखे, उफ्फ कयामत सी, ख़्वाबो मैं सताती है वो ll लगकर सीने से भरती है, यूँ गर्म साँसे जब , सर्द  मौसम  ... "गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं " for audio ⇊👇 https://m.starmakerstudios.com/share?recording_id=5348024549207405&share_type=more
"हम पूरा एतबार रखते है " गिला,रंजिशे नाराजगी, होश मैं सब रखते है , बेखुदी मैं पर हम बस,अब आपके ख्याल रखते  है // नहीं है काबू मैं धड़कने,और ज़ज्वात मेरे , मत पूछो, सामने आपके कैसे इन्हें संभालकर रखते है // बेचैनियाँ,घबराहट पूछने लगी ,मुझसे  क्या अब इन पर आप इख्तियार रखते है // फैसला आपका हर मंज़ूर होगा, इतना तो हक आप "रत्न" पर  सरकार रखते है // दिल चाहे जहाँ ,आपका वहां ले चलियें, औरो का नहीं पता "हम आप पर पूरा एतबार रखते है"// बेखुदी -होश न होना ,जब दिमाग काम करना बंद करे // गिला-शिकायते .रंजिशे -मतभेद या लड़ाई // इख्तियार -अधिकार  या  नियत्रण (control) एतबार-भरोसा 
ये वक़्त तो गुजरने दो ,ये उम्र तो जरा ढलने दो , देखूंगी प्यार तेरा ,मेरा ये रंग तो जरा उतरने दो , बड़ी बेपरवाह होती है ,जवानी की ये नदियां , तैरना तुम ,इनका पानी तो जरा उतरने दो . अभी तो ये आइना मुस्कुराता है मुझको देखकर , देखूंगी तेरी भी आँखों मैं अपना ये रूप . इन आइनो को तो जरा मुझसे मुकरने दो , तेरे कांधो पर नहीं ज़िम्मेदारिया अभी , मेरी आज़ादियों पर नहीं पाबंदिया अभी , देखूंगी बेचैनियों को, हक़ीक़त बताएगी सब , इन पर बोझ और पाबंदिया तो बढ़ने दो , अभी सब धुंधला है प्यार  के इस कोहरे मैं , साफ नज़र आएगा ,जरा धुप तो खिलने दो