गुप्तरत्न : बिखरी ज़ुल्फे,गोरे गाल, और वो उसकी आँखे,उफ्फ कयामत...

गुप्तरत्न : बिखरी ज़ुल्फे,गोरे गाल, और वो उसकी आँखे,
उफ्फ कयामत...
: बिखरी ज़ुल्फे,गोरे गाल, और वो उसकी आँखे, उफ्फ कयामत सी, ख़्वाबो मैं सताती है वो ll लगकर सीने से भरती है, यूँ गर्म साँसे जब , सर्द  मौसम  ...

"गुप्त रत्न "
" भावनाओं के समंदर मैं "
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