गुप्तरत्न : मुझे दोस्ती से डर लगता है,मुझे मुहब्बत से डर लगता ... : मु झे दोस्ती से डर लगता है, मुझे मुहब्बत से डर लगता है , डरती हूँ जुड़ने से लोगो से , क्यूंकि मुझे अलग होने से डर लगता है ॥ दीखते नहीं है चेहरे लोगो के ठीक से , इसलिए मुझे अंधेरो से डर लगता है आँखे चौंधिया जाती है, इसलिए मुझे तेज उजालों से डर लगता है ॥ मुददते हुई ठिकाना छोड़े हुए , की मुझको अब बसने से डर लगता है , आवारगी का आलम भी रहा गज़ब, की राहों पर ही घर लगता है, की मुझे अब घर से डर लगता है,॥ मुझे जुड़ने से डर लगता है ................... झुका देती है हर किसी के आगे, की मुझे ऐसी गरीबी से डर लगता है, हर शह खरीदने की चाहत करें की, मुझे ऐसी अमीरी से डर लगता है ॥ बदल जाते है मायने बातों के, ऐसे झूठ से डर लगता है,