गुप्तरत्न : बारिशों मैं हम भी

"गुप्त रत्न " भावनायों के समन्दर में,
बारिशों मैं हम भी 

बहुत तरस लिए,अब ,
मिले खुलकर दूर कही बारिशों मैं हम भी //

क्या और सोचना अब ,
क्यों फंसे,दुनिया की साजिशो मैं हम भी //

थोडा सा जी ले अब,
भर दें रंग,अपनी ख्वाबहिशो  मैं हम भी //

आराम चाहिए दिल,को अब,
गुज़रे है बहुत ,मुहब्बत के हादसों से हम भी//

चाहता है, दिल नजदीकियां अब ,
तरसे है बहुत, इन दूरियों मैं हम भी //

कैसी तिश्नगी है,ये अब ,
क्यूं हो शामिल ,प्यासों मैं हम भी //

बहुत तरस लिए अब,
खुलकर मिले,दूर कहीं बारिशो मैं हम भी..............

बात दिल की,कह दे अब,
बेकरारी क्यूँ?कब तक रहेंगे खामोश हम भी//

लोग सब देख रहे है अब,
बन न जाएँ इक,दुनियां के और तमाशों मैं हम भी //





टिप्पणियाँ

Nahi mitegi mrigtrishna kasturi man ke andar hai

Guptratn: पिता