महसूस की है उन हाथों की सर्दी "गुप्तरत्न" ने,

                                                  

 







बात करने के तरीके  तो  हजारो है
पर मुंतिजर है तेरी इक इज़ाजत के ,
इतनी भी संजीदगी अच्छी नहीं,
मुहब्बत भी तो नहीं होती बिना शरारत के ll

ब तेरे साथ बीतेगी सुबह -शाम मेरी,
जाने कब आयेगे वो दिन क़यामत के ll
हाथ न छुटेगा जो पकड़ा इक बार  ,
लोग कायल है मेरे निभाने की आदत के ll


आग भी ठंडी हो जाती है आकर हाथों मैं ,
ऐसा भी होता है अक्सर मारे घबराहट के ,  
महसूस की है उन हाथों की सर्दी "रत्न" ने,
एहसास नहीं जाते जिनकी गर्माहट के ll
.मुन्तिज़र है तेरी एक इजाजत के 

टिप्पणियाँ

Nahi mitegi mrigtrishna kasturi man ke andar hai

Guptratn: पिता