#पतझड़ गवाह है,की किसी बाग में हमेशा तो बहार न रही



Gupt Ratn ("Guptratn" भावनाओं के समन्दर मे ...
#गुप्तरत्न,पतझड़ गवाह है 


#गुप्तरत्न,
पतझड़ गवाह है, किसी बाग में हमेशा तो ब बहार ना रही





तेरी "हाँ" की अब में तलबगार न रही ,

तेरी "न" ही अच्छी है, तेरी, "न" में मेरी हार न रही ,

तेरी  " हाँ" जंजीर है बाँध देगी मुझे,
अभी उडती हूँ,तेरी "न" कम से कम मेरे परों पे तो भार न रही ll

ये उलझने जो रही ,हमारे दरमियाँ अब तलक,
अब समझे ,बेमकसद ,ये अड़चने बेकार न रही ,

जहाँ -जहाँ  "मैं " नहीं थी,मैं फिर भी वहां रही ,
फिर यहाँ तो "मैं" हूँ, कैसे कहूँगी तेरे अपनों के बीच में दिवार न रही 

थोडा सा दुखेगा,ज़ख्मी  भी होगा दिल तुम्हारा ,
चलो ये तो न कहोगे,की लफ्जों में वो पहले सी धार न रही ,

कभी तुम डरते थे  ,उलझनो  से ,
ये ही डर अब हमको है, चलो सोच भी हम पे कोई उधार न रही ,

मौसम का क्या भरोसा की बदल जाये किस घड़ी,
पतझड़ गवाह है,की किसी बाग में हमेशा तो बहार न रही

जब तेरा दिल किया , तू  मिल लिया हमसे ,
एहसान रहा मुझ पे,तेरी अड़ी भी  हमपे हर बार  न रही ,ll
"©"





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Nahi mitegi mrigtrishna kasturi man ke andar hai

Guptratn: पिता