पिता_एक आधार जीवन का


 "गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं "





दिनभर मेहनत की आग में जलता है ,
अपना सुख चैन सब एक किनारे रखता है /
तब कही बेटे के चेहरे में नयी साइकिल की ख़ुशी, और बेटी के तन पे नए लिबास का रंग फबता है 
मां रोके कह देती है दुखड़े सारे ,पर
वो तो  मर्द है न , रो भी नहीं सकता है ,
अपना सुख चैन सब किनारे रखता है .....
दिन भर मेहनत की आग में जलता है ,
अच्छे खाने का शौक भी शौक़ से रखता है ,
पर बेटी के हाथों का जला खाना भी स्वाद से चखता है ,
दिल पे पत्थर रखकर,बेटे की गल्ती पर उसको गाली भी बकता है,
बेटी के आंसू गिरने पर उसका दिल भी दुखता है।
पिता है जैसे तैसे भी हो, पर सब mangae करता है ,
अपना सुख चैन सब .....
जो कभी खुद न पढ़ पाया उन महंगे school में ,
पर खुद के शौक किनारे रखके,
बच्चो के स्कूल की वो महंगी फीस भी भरता है ,
पिता है बच्चो की खुशियों के लिए सब कुछ वो करता है ,
दिन रात मेहनत की आग में जलता है ....

टिप्पणियाँ

Nahi mitegi mrigtrishna kasturi man ke andar hai

Guptratn: पिता