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गुप्त रत्न "ख़ामोशी की गहराई मैं " लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुप्तरत्न :वो तेरा ख्याल की जी न सकेगी बिन तेरे "रत्न "

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"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं " क्या बताएं दिल मैं क्या -क्या छिपाए बैठे है , दिल मैं वो तेरे,  सारे सितम छिपाए बैठे है ll दिखता है रोशन, मेरा घर बाहर से जमाने को , क्या दिखाए अन्दर कितना तम छिपाए बैठे है ll मलहम भी कैसे लगाएगा ,अब आकर कोई , हम भी तो, दिए तेरे सारे ज़ख्म छिपाए बैठे है ll कितने गम छिपाए बैठे है  मेरी मुस्कराहट पर फ़िदा है , तो ज़माना  सारा  देख न पायेगा कोई , कितने गम छिपाए बैठे है ll वो तेरा ख्याल की जी न सकेगी बिन तेरे "रत्न " जियेंगे तेरे बिन,अब भी खुदमे दम छिपाए बैठे है ll
"गुप्त रत्न""ख़ामोशी की गहराई मैं" इतना भी गुरुर किसलिए तुमको आखिर , धुआं,मिटटी और कफ़न हासिल आखिर // जितने बार भी पलटकर पीछे देखा मैंने , नज़र आयी खुदगर्ज़ी, दगा  ही आखिर// कितना पागल है ढूढ़ता है सारे जहाँ मैं कस्तूरी सा,सुकून तेरे अंदर है आखिर// तेरी दहलीज़ पर ही  छोड़ दिया सब कहाँ तलाशूँ,खुशिया वही है आखिर // मुकर्रर करें सजा,"रत्न" की औकात इतनी दिया है काम,खुदा किसलिए है आखिर? // जो दिए थे दर्द अब लौटना है मुझको , तेरे एहसान ये  कब तक रखूं  आखिर// जुर्माना मुहब्बत का "रत्न" के हिस्से रहा, शामिल कहाँ तू था?इस गुनाह मैं आखिर // तेरे साथ जो गुज़री बस उतनी ही थी , ज़िंदगी का और मतलब क्या आखिर //

हर शख्स हैरान परेशान सा है यहाँ पर ,किसको सुनाएँ ...

: हर शख्स हैरान परेशान सा है यहाँ पर , किसको सुनाएँ ... : हर शख्स हैरान परेशान सा है यहाँ पर , किसको सुनाएँ हाल-ए-दिल यहाँ पर , जो बोले, तो शिकायत ही है हर लव पर , ए खुदा खामोश रहना बेहतर है यह...

"गुप्त रत्न "तुमने तो मुझे सदा विकल्पों मैं रखा

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गुप्त रत्न तुमने तो मुझे सदा विकल्पों मैं रखा   मैंने तेरे सिवा कोई विकल्प न रखा / तुमसे जो शुरू हुयी वो कायम है अब भी इस कहानी मैं और किरदारों को न रखा / झूठ और झूठ के सिवा तूने कुछ न कहा, मैंने सच की इम्तिहा तक सच को रखा / कैसा खुदा तेरा और क्या इबादत है तेरी एक पाक दिल का भी एहतराम न रखा / शौकीन है तू मीठे ,और मीठी बातो का , मेरा ज़ायका ही कड़वा था,मीठा न चखा / तुझे साहिल प्यारे थे तू किनारे पर चल दिया , मैंने तो तेरी आस पर था, पतवार छोड़ रखा / गुज़ारा था तेरा उन किनारो पर,मेरे बिना भी, इसलिए अब तक खुदको मझधार मैं है रखा / गुप्त रत्न  (©,
हर बार यूँ ही खामोश बिखरे से चले आते है , लवो पर लेकर अधूरी सी बात चले आते है । जाते तो है ख़तम करने सिलसिला ये मुलाकातों का , वायदा ,मगर साथ अगली मुलाकात ,का लिए आते है ॥ हाथ मैं शराब लेकर भी करते है होश की बातें हम, उनके पास से क्यों ?बिन पिए बहके से चले आते है । आतें है उनके पास से, हम कुछ यूँ तिशनगी लेकर , जैसे सागर के पास से भी प्यासे चले आते है ॥ सौ सवाल दुनिया वालों के और खामोश है हम, जाते है जवाब लेने,और एक सवाल लिए आते है । इस पर भी नहीं,उस पर भी नहीं पहुंचे , कश्ती को यूँ मझधार पर छोड़कर चले आते है ॥ यूँ तो खुद नहीं जानती अपनी चाहत ए "रत्न " वहां से और, उलझे ख्यालात लिए चले आते है । धोखा करते है अपनों से ,मिलने के लिए उनसे , और खुदसे से फरेब करके चले आते है ॥ देंगे किनारा मेरी कश्ती को जो खुद डुब रहे है , झूठ है हम ,इस हक़ीक़त को लिए चले आते है है लवो पर लेकर अधूरी सी बात चले आते है , हर बार यूँ ही खामोश से चले आते है ॥ "गुप्त रत्न "
"गुप्त रत्न " सोचती हूँ हर बार पहले कदम ये बढ़ाने  से , साथ है मेरे, कह सकेंगे वो इस  जमाने से , मिल जाएगी क्या मंज़िल,इन राहों पर , खो न जाऊं,सोचती हूँ पहले जाने से ,॥ सोचते है बन जाएँ रिश्ते वो पहले से , कांच जुड़ता है कही  बाद टूट जाने के । नहीं बनता,शीशमहल पहले की मानिंद , सोचा नहीं ,यूँ जमीं पर पहले गिराने से ॥ खरा तुमको भी उतरना पड़ेगा इम्तिहान मैं , सोच लो इक  बार ,पहले मुझे आजमाने से ,। हम तो फिर भी गुज़ार लेंगे ज़िन्दगी तनहा यूँ , क्या तुम लड़ सकोगे मेरी तरह ज़माने से .॥ कितनो को दुश्मन बना दिया मेरी चाहत ने , अब रोकेंगे कैसे दोस्तों को दुश्मनी निभाने से ,। तेरी निगाहों मैं लिखा है हाल-ए-दिल तेरा होता क्या है ?ख़ामोश होकर यूँ नज़ारे चुराने से ॥ कहते है तोड़ देंगे ,हर रिश्ता ए "रत्न " देखेंगे,क्या है ?हक़ीक़त वक़्त आने पर । सोचती हूँ हर बार पहले कदम ये बढ़ाने  से , साथ है मेरे, कह सकेंगे वो इस  जमाने से ॥
दिल को चैन न मिला किसी बहाने से , न पास उसके जाने से ,न दूर उसके जाने से i  जानती थी ये मुश्किलें सिर्फ मेरी है , उनको नहीं मतलब मेरे दिल लगाने से I , मालूम था  ,टूटेगा दिल-ए-आइना "रत्न" मिला क्या आखिर उनको आजमाने से , इंतज़ार -ए-दर्द फिर भी सह रहे थे हम ' जान गई , मेरी उनके एक बहाने से I और क्या करते कहा जाते ,हम इश्क़ मैं , आखिर मैं बात ये सीखी इस जमाने से I ज़िन्दगी तो वक़्त से चलती रहती है , फर्क क्या ,किसी के आने से या जाने से I वो भी तो कही न कही मज़बूर होगा , मिलेगा क्या उसे? मेरा दिल यूँ दुखाने से I कुछ नहीं हासिल यूँ तड़पने से ए "रत्न" फायदा होगा, शायद उसे भूल जाने से I गुप्त रत्न
 "गुप्त रत्न " ये वक़्त तो गुजरने दो ,ये ... : ये वक़्त तो गुजरने दो ,ये उम्र तो जरा ढलने दो , देखूंगी प्यार तेरा ,मेरा ये रंग तो जरा उतरने दो , बड़ी बेपरवाह हो...
देखंगे अब , फिर हम कब मिलेंगे , पुकारा जहाँ हमें ,वहा खड़े मिलेंगे , वफ़ा भी तेरे हाथ मैं , दगा भी तेरे हाथ मैं , तू ही जाने , मुक्कदर मैं हमें क्या मिलेंगे छोड़ते है फैसला अब ये तेरे हाथ मैं, की तुझे हम मिलेंगे या न मिलेंगे , पुकोरेंगे हमें जहाँ वहाँ,हम मिलेंगे , तुझसे ही है मेरी ज़िन्दगी मैं रौशनी , जानते है की ,हमें अँधेरे ही मिलेंगे , मरना मुमकिन नहीं किसी के वास्ते , गर जिए तेरे वगैर तो दर्द ही मिलेंगे , हम तो बावफ़ा है ,वफ़ा ही करेंगे , देखें वफ़ा के सिले हमें क्या मिलेंगे , पुकारोगे हमें जहाँ वहां हम मिलेंगे , देखेंगे फिर हम मिलेंगे या  न मिलेगें

"गुप्त रत्न "हिंदी कवितायेँ : मझधार मेरी ज़िन्दगी है ,अबकी किनारे अच्छे नहीं लगत...

 "गुप्त रत्न ": मझधार मेरी ज़िन्दगी है ,अब की किनारे अच्छे नहीं लगत... : मझधार मेरी ज़िन्दगी है ,अब की किनारे अच्छे नहीं लगते , मैं जीतूंगी या नहीं ,नहीं मालूम , पर तुम हारे अच्छे नहीं लगते , बस आवाज़ सुने मेरी...
आज फिर वो आया हमें छोड़कर जाने के लिए, फिर उसने बात की हमसे ,दिल दूखाने के लिए , जानते थे की वो वफ़ा कर नहीं सकता हमसे , क्यों कहते रहे उससे झूठी उम्मीदे दिलाने के लिए , वो बताता रहा ,की हम उसकी नज़रो मैं क्या है क्यों कोशिश की नज़रो मैं उसकी ,जगह पाने के लिए , हमारे सपने तो थे ही ,रेंत के घरोंदो के मानिंद , ज़िद थी हमारी ही उसमे ज़िन्दगी बिताने के लिए , टूटे ये ,तो हक़ीक़त का सामना सा हुआ , की ज़िन्दगी नहीं है ,खवाबो मैं , जीने के लिए , हम तो गैरों से भी करते रहे , ज़ुस्तज़ु फूलों की , याद आया ,अपने कम नहीं ,कांटे बिछाने के लिए , दुनिया का तो दस्तूर ही है आग लगाने का , की 'रत्न ' ने खुद कसर न रखी,अपना घर जलाने के लिए / "गुप्त रत्न "
किसने गुजारी ,ज़िन्दगी तनहा जो हम गुज़ार लेंगे , पड़ेगी जरुरत जब साथ की, तो तेरा नाम लेंगे , हर निगाह खोजती है ,सहारा यारों यहाँ , की गिरेंगे जब हम भी,तो तेरा हाथ थाम लेंगे , किसने गुज़ारी ,ज़िन्दगी तनहा  जो.. . . . . . . मैं तुम्हारी नहीं क्यों गम करते हो ,इसमें , बात होगी अपनों की ,तो हम तेरा नाम लेंगे , हम कब कहते है ,गुज़ार लेंगे ज़िन्दगी तनहा , जो न गुज़र  सकी तब ये इकरार कर लेंगे , हम मुसाफिर है नए ,और राहों का आलम ये , खाएंगे गर ठोकर तो तुम्हे याद कर लेंगे , हालात ये दिल के  ,कहते ही बने न सहते ही , सुकून मिलेगा ,बोझ जब दिल का उतार लेंगे हार कर जहाँ से , पुकारेंगे जब तुमको हम , वक़्त पर तेरे मिज़ाज़ भी "रत्न "जान लेंगे , किसने गुज़री ज़िन्दगी तनहा

इतनी पिला मुझे की होश कम भी न रहे ,........

इतनी पिला मुझे की होश कम  भी न रहे , जो होश न रहे तो मुझको कोई गम भी न रहे , होश  जो रहा तो तलाश करती रहूंगी सुकून को , इतनी पिला मुझे की मुझ पर ये सितम भी न रहें , इतनी पिला मुझे की होश कम  भी न रहे ,........ मेरे यकीन उन पर,, उनके धोखे मेरे यकीन पर , अब हो कोई राह, की वफ़ा का वहम भी न रहें , इतनी पिला मुझे की होश कम  भी न रहे ,...... कब तक करेगा अहसान मुझ पर ए  दोस्त तू , की एक बार दे ज़हर की ,बाकि दम भी न रहे , जो  न रहे  "रत्न "तो कोई गम भी  न रहे ,
अचानक पन्ने  पलटे  ,की कुछ ख्याल आ गया कितने आगे आ चुके है,हम ये सवाल आ गया , एक एक पन्ना याद दिलाता रहा बीते वक़्त की कितना वक़्त गुज़र गय अब, ये सवाल आ गया , जहाँ थे कल खड़े ,आज भी वहीँ है हम , क्या बदला ज़िन्दगी  मैं, ये सवाल आ गया , सोचा था कुछ तो बदल ही जायेगा वक़्त , कुछ न बदल सके ,दिल मैं मलाल आ गया , अचानक पन्ने  पलटे  ,की कुछ ख्याल आ गया। ..... पीछे जाना मुमकिन न रहा ,आगे जा ना सके , देखकर हालत ,अपनी बेबसी का ख्याल आ गया , बीत वक़्त देता है, सबक अफ़सोस  तर्जुबा न ले सके आज नादानी से अपनी ,ये हाल आ गया। अचानक पन्ने।   . . . . . . . . . . . . .. .
न वो अब घर रहा, न वो रहे ठिकाने , तुझसे मिलने के भी,खत्म हुए बहाने, न रही उम्मीदे ,न ही तुमसे कोई गिला, यूं भी इससे हमको है ,कुछ नहीं मिला, न रहा इंतजार दोनों को इक दूजे के आने का, डर भी हुआ खत्म अब, इक दूजे के जाने का,! दिल की कम सुनते है , दिमाग है हावी, देख अब तेरे संग हम भी हो गए सयाने, न वो घर रहा.............
क्या करे की अब कुछ समझ आता नहीं , छाया है कोहरा घना ,की कुछ नज़र आता नहीं , चले थे कहाँ ,और पहुंचे है कहाँ ,पर आकर हम, दुरी है बराबर ,लौंटेंगे कैसे ,? आगे चला जा ता नहीं ,..... क्या करे की अब कुछ समझ .... हम करते रहे दिल की और, वह सुनते रहे दिमाग की, की उनने जो किया वह हमसे किया जाता नहीं , हमारी चाहत है अलग और, अलग उनकी प्यास है , की मुहब्बत मैं ,हमसे अब ये समझौता किया जाता नहीं, क्या करे की अब .......... जलाने  के पहले सोचा न था ,की तपन आएगी हम तक भी, आगाज़ तो कर दिया हमने, अज़ाम अब दिया जाता नहीं, हर ज़ख़्म लिया दिल पर खुद अपने हाथों से, की अब इलज़ाम किसी पर दिया जाता नहीं , क्या करे की ........ चाहत है क्या? क्या बताएं हम ए ' रत्न  , की हमसे अब आगे कुछ कहा जाता नहीं, क्या करे की अब कुछ समझ आता नहीं............. गुप्त रत्न