"गुप्त रत्न "तुमने तो मुझे सदा विकल्पों मैं रखा


गुप्त रत्न
तुमने तो मुझे सदा विकल्पों मैं रखा 
मैंने तेरे सिवा कोई विकल्प न रखा /
तुमसे जो शुरू हुयी वो कायम है अब भी
इस कहानी मैं और किरदारों को न रखा /
झूठ और झूठ के सिवा तूने कुछ न कहा,
मैंने सच की इम्तिहा तक सच को रखा /
कैसा खुदा तेरा और क्या इबादत है तेरी
एक पाक दिल का भी एहतराम न रखा /
शौकीन है तू मीठे ,और मीठी बातो का ,
मेरा ज़ायका ही कड़वा था,मीठा न चखा /
तुझे साहिल प्यारे थे तू किनारे पर चल दिया ,
मैंने तो तेरी आस पर था, पतवार छोड़ रखा /
गुज़ारा था तेरा उन किनारो पर,मेरे बिना भी,
इसलिए अब तक खुदको मझधार मैं है रखा /
गुप्त रत्न 
(©,

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