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#Guptratn#हर स्टूडेंट की दर्द भरी कहानी गुप्तरत्न की जुबानी- बाल-दिवस

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"गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं "                            पुरे साल मैंने क्या किया, कभी बाजू मैं बैठी लड़की को देखा, कभी क्लास बंक किया । जब होता था revision मेरी होती थी अक्सर तबियत ख़राब, लगती थी प्यास आती थी वाशरूम की याद, जब समझती थी टीचर चेप्टर हमने भी खूब उड़ाए पीछे बैठकर कागज़ के हेलीकाप्टर ॥ फ़िक्र किसने की कभी एग्जाम की पर खबर थी बराबर फेसबुक व्हाट्सप्प और इंस्टाग्राम की । खूब समय बिताया हमने टीचर्स को कॉपी करने मैं, दोस्तों के खेल  में ,हंसी और कभी झगड़ने में ॥ पर वक़्त ने भी गज़ब सितम ढाया , बीत गया साल अब फ़ाइनल एग्जाम का वक़्त आया ॥ न अब कोई सहारा न कोई अपना नज़र आया , जबb सामने question  पेपर मैडम ने थमाया ॥ हमने भी कर लिए हालातो से समझौता , बस हल किये प्र्शन दो या एकलौता ॥ अब आयी रिजल्ट की बारी , पड़ गयी साल भर की करतुते भारी। मैडम ने भी दिए भर भर के जीरो , असलियत सामने आ गई, बनते थे क्लास में बहुत हीरो ॥ अब आया वो दिन भी अलबेला, जब लगना था टीचर्स और पेरेंट्स का मेला ॥ दोनों मिले खूब बातें हुई हमारी , अब थी बस घर चलने की त

खुल कर लिख तो दूँ ,तेरा नाम हर नज़्म में,

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"गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं " उड़ेंगे कितने ऊपर आसमान पे, तुम  बस  उनकी उड़ान देखो,  बैठेंगे कब किस डाल पे, तुम बस उनकी थकान देखो , जिस  किसी को लगता है ,कि चला रहा है वो दुनिया , कहो उनको कभी, कि क्यूँ बैठा है यहाँ भगवान् देखो , क्यूँ प्यास का ज़िक्र करते हो हर घडी  तुम, खुदा ने दिया तो है, आधा खाली रहा , पर आधा भरा भी तो है जाम देखो , जो कर रहे हो वही लौट के भी आएगा , गर भरना है ,झोली फूलों से , तो आज कर्मो के तुम अपने बगान देखो, महरूम है ये गलियां ,जात और मजहब के इल्म से , क्या यकीं ,इसमें बस जाएँ कोई, "बनिया " य आकर "खान "देखो , खुल कर लिख तो दूँ ,तेरा नाम हर नज़्म में, मान एहसान, करना नही चाहते तुझे और बदनाम देखो ,

गुप्तरत्न : यकीं क्या वक्त का,जो है आज ये पल "कल"न हो

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गुप्तरत्न : यकीं क्या वक्त का,जो है आज ये पल "कल"न हो : ये मुहब्बत अधूरी ही रहे,कभी मुकम्मल न हो, चन्द अशआर अधूरे ही अच्छे है,कभी पूरी ये ग़ज़ल न हो, तुझको देखकर मचलती रहे ये धड़कने यूं,  य... "गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं "