ज़िंदगी लो सफर पे आ गई ...........

कहीं का रंग भा गया कही का रूप भा गया,
कही की छावं भा गई ,कही की धुप भा गई ,
 गई ज़िंदगी ,लो सफर पे  गई ,
 गई ज़िंदगी लो सफर पे  गई ...........
कही का रंग भा .............
सुबह हुयी ,शाम आयी ,रौशनी भी ढलने लगी,
लो उम्मीदों की बस्ती में रात  गई ,
 गई ज़िंदगी लो सफर पे  गई ............
कहीं का छावं भा ................
मानकर हम तुझेमंज़िल चलते है ,
चलते चलते हमसफ़र देख क्या डगर  गई ,
 गई ज़िंदगी लो सफर पे .............
मंज़िलों का पता ठिकाने मिले ,
इतनी धीमी रही मेरी रफ़्तार की ,
चलते चलतेज़िंदगी की रात  गई .....
 गई ज़िंदगी लो सफर ............
रुकना भाया  मुझको को किसी तौर पे ,
अब ये आवारगी मुझको रास  गई .........
 गई ज़िंदगी सफर पे  .........
कही की धुप भा गई ........

टिप्पणियाँ

Nahi mitegi mrigtrishna kasturi man ke andar hai

Guptratn: पिता