# guptratn माना की पहले सा ,तेरी गलियों में, मेरा आना जाना नहीं,
गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं "
माना की पहले सा ,तेरी गलियों में, मेरा आना जाना नहीं,
पर ये भी यकीं रख,दिल का तेरे सिवा कोई और ठिकाना भी नहीं।
तुझसे नाराज़ हो जाऊं,ये मेरे वश में था ही नहीं,कभी
अब कुछ दिल में है तो,मुझे भी नहीं पता,और तुझे समझाना भी नहीं।
इक आज़ादी की किरण सी दिखाई दी है मुद्द्तो बाद,
अब तेरे ख़्यालों की गिरफ़्त में,मुझे दिल को ओर सताना भी नहीं।
गांठ पे गांठ ,गांठ पे गांठ, धागे सा उलझते जा रहा दिल,
हम सुलझा तो नही पाएंगे,पर अब मुझे और उलझाना भी नही।
ये जो कहानी है,इसको अब यूँ रहने देते है ,
इसमें अब नया लिखना नहीं कुछ,और लिखा हुआ मिटाना भी नहीं।
तुमने ही कहा था कभी,कि बहुत वक़्त दे दिया तुमको हमने,
वापस लेना चाहते थे कभी,पर अब ज़रूरत भी नहीं ,और तुम लौटाना भी नहीं।
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