गुप्तरत्न: मेरा दोष कोई मुझे तुम बता दो

मेरा कोई दोष मुझे तुम बता दो,
फिर चाहे जो भी हो तुम सज़ा दो ll
जो  कहोगे  वो मंज़ूर कर लुंगी ,मैं
मजबूर हूँ,अपना हक भी जता लो ll

मन को कैद न कर पाओगे मेरे ,
थोड़े तो ये  बंधन मुझपे हटा लो ll

तुम ही कहते थे ,भीग जाओ फिर,
अब चाहत,बादलो से मुझे छुपा लो ll

अब देखने दो  ख्वाब फिर  मुझे ,
क्यूँ चाहते हो यूँ ,नींद से जगा लो 

हिसाब मैं तो बहुत अच्छे हो तुम,
जिंदगी का ये,गुणा-भाग लगा लो ll
तुमपे है  ,जोड़ लो मेरी जिंदगी मैं,
उसे या, फिर मुझे खुद से घटा लो ll

मायने तुम्हारे  मिरी ज़िन्ग्दगी मैं ,
अपने हो , गैरोकी तरह सता लो ll

तेरे कंधे पर सर रखकर बहुत रोई "रत्न",
उन एहसानो तले और मुझे तुम दबा लो ll

टिप्पणियाँ

Nahi mitegi mrigtrishna kasturi man ke andar hai

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