Nahi sikhni aesi duniyadari


 जिसमे झूठ ,बईमानी और हो मक्कारी ,
रहने दो जी, हमें नहीं सीखनी ऐसी दुनियादारी ll

वो सच छुपा जाते है, हर किसी से ,वाह
कहाँ से सीखे हम , उनके जैसी अदाकारी ,ll

हर कोई फायदा उठा जाता है , इसका ,
लो पड रही है ,ये मासूमियत हमपे अब भारी ll

चाहत है तेरी , प्यास भी हमको ,
इक तू न समझा,समझ गई ये बाकि दुनियां सारी ll

हार जाते है जाने कितने दिल मेरी इस हंसी पे ,
पर दिल तुझसे हारा और में इस दिल से हारीII

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Nahi mitegi mrigtrishna kasturi man ke andar hai

Guptratn: पिता