खुल कर लिख तो दूँ ,तेरा नाम हर नज़्म में,

"गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं "


उड़ेंगे कितने ऊपर आसमान पे,
तुम  बस  उनकी उड़ान देखो,
 बैठेंगे कब किस डाल पे,
तुम बस उनकी थकान देखो ,

जिस  किसी को लगता है ,कि चला रहा है वो दुनिया ,
कहो उनको कभी, कि क्यूँ बैठा है यहाँ भगवान् देखो ,

क्यूँ प्यास का ज़िक्र करते हो हर घडी  तुम,
खुदा ने दिया तो है, आधा खाली रहा ,
पर आधा भरा भी तो है जाम देखो ,

जो कर रहे हो वही लौट के भी आएगा ,
गर भरना है ,झोली फूलों से ,
तो आज कर्मो के तुम अपने बगान देखो,

महरूम है ये गलियां ,जात और मजहब के इल्म से ,
क्या यकीं ,इसमें बस जाएँ कोई,
"बनिया " य आकर "खान "देखो ,

खुल कर लिख तो दूँ ,तेरा नाम हर नज़्म में,
मान एहसान, करना नही चाहते तुझे और बदनाम देखो ,

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