गुप्तरत्न : यकीं क्या वक्त का,जो है आज ये पल "कल"न हो

गुप्तरत्न : यकीं क्या वक्त का,जो है आज ये पल "कल"न हो: ये मुहब्बत अधूरी ही रहे,कभी मुकम्मल न हो, चन्द अशआर अधूरे ही अच्छे
है,कभी पूरी ये ग़ज़ल न हो, तुझको देखकर मचलती रहे ये धड़कने यूं,  य...

"गुप्तरत्न "
"भावनाओं के समंदर मैं "

टिप्पणियाँ