"गुप्त रत्न "
सोचती हूँ हर बार पहले कदम ये बढ़ाने से ,
साथ है मेरे, कह सकेंगे वो इस जमाने से ,
मिल जाएगी क्या मंज़िल,इन राहों पर ,
खो न जाऊं,सोचती हूँ पहले जाने से ,॥
सोचते है बन जाएँ रिश्ते वो पहले से ,
कांच जुड़ता है कही बाद टूट जाने के ।
नहीं बनता,शीशमहल पहले की मानिंद ,
सोचा नहीं ,यूँ जमीं पर पहले गिराने से ॥
खरा तुमको भी उतरना पड़ेगा इम्तिहान मैं ,
सोच लो इक बार ,पहले मुझे आजमाने से ,।
हम तो फिर भी गुज़ार लेंगे ज़िन्दगी तनहा यूँ ,
क्या तुम लड़ सकोगे मेरी तरह ज़माने से .॥
कितनो को दुश्मन बना दिया मेरी चाहत ने ,
अब रोकेंगे कैसे दोस्तों को दुश्मनी निभाने से ,।
तेरी निगाहों मैं लिखा है हाल-ए-दिल तेरा
होता क्या है ?ख़ामोश होकर यूँ नज़ारे चुराने से ॥
कहते है तोड़ देंगे ,हर रिश्ता ए "रत्न "
देखेंगे,क्या है ?हक़ीक़त वक़्त आने पर ।
सोचती हूँ हर बार पहले कदम ये बढ़ाने से ,
साथ है मेरे, कह सकेंगे वो इस जमाने से ॥
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