देखा है मैं बच्चो को हँसते हुए
 खिलखिलाते हुए,गुनगुनाते हुए ।
किसी की किताब छीन लेना कभी ,
 किसी की कॉपी को फाड् देना ,
फिर देखा उसे गलती पर मनाते हुए ॥
अपना टिफिन खाकर,दूसरे का छीनना कभी
 भूखे रहकर खुद दोस्तों को खिलाना ,
देखा है मैंने इनको मिल बांटकर खाते हुए ॥
शिकायते करना ,कभी मार देना फिर चिढाना
 देखा उसी दोस्त को टीचर की डांट से बचाते हुए
 झगड़ लेना कभी, फिर कंधे पर हाथ डालकर चलना
 देखा मैंने उनको एक दूसरे को रूठते- मनाते हुए ॥
 फेल हो जाना, कभी परीक्षा न देना
 फिर पूछने पर झूठी कहानी सुनाते हुए ,
"मैंने तो कुछ नहीं किया " पकडे जाने पर कहना,
 देखा है,परीक्षा मैं बच्चो को पूछते और बताते हुए ॥
 डांट खाना कभी फिर चुपके से हँसना देखा है
 मैंने बच्चॊ को शरारत करते हुए, टीचर को मनाते हुए तो कभी सताते हुए ॥
 जाते है कुछ पुराने तो बनते है नए परिवार का हिस्सा ।
 मैंने हर साल देखा बच्चॊ को स्कूल से आते हुए जाते हुए ॥
 गुप्त रत्न

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