दिल को चैन न मिला किसी बहाने से ,
न पास उसके जाने से ,न दूर उसके जाने से i 
जानती थी ये मुश्किलें सिर्फ मेरी है ,
उनको नहीं मतलब मेरे दिल लगाने से I ,
मालूम था ,टूटेगा दिल-ए-आइना "रत्न"
मिला क्या आखिर उनको आजमाने से ,
इंतज़ार -ए-दर्द फिर भी सह रहे थे हम '
जान गई , मेरी उनके एक बहाने से I
और क्या करते कहा जाते ,हम इश्क़ मैं ,
आखिर मैं बात ये सीखी इस जमाने से I
ज़िन्दगी तो वक़्त से चलती रहती है ,
फर्क क्या ,किसी के आने से या जाने से I
वो भी तो कही न कही मज़बूर होगा ,
मिलेगा क्या उसे? मेरा दिल यूँ दुखाने से I
कुछ नहीं हासिल यूँ तड़पने से ए "रत्न"
फायदा होगा, शायद उसे भूल जाने से I
गुप्त रत्न

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