आज फिर वो आया हमें छोड़कर जाने के लिए,
फिर उसने बात की हमसे ,दिल दूखाने के लिए ,

जानते थे की वो वफ़ा कर नहीं सकता हमसे ,
क्यों कहते रहे उससे झूठी उम्मीदे दिलाने के लिए ,

वो बताता रहा ,की हम उसकी नज़रो मैं क्या है
क्यों कोशिश की नज़रो मैं उसकी ,जगह पाने के लिए
,
हमारे सपने तो थे ही ,रेंत के घरोंदो के मानिंद ,
ज़िद थी हमारी ही उसमे ज़िन्दगी बिताने के लिए ,

टूटे ये ,तो हक़ीक़त का सामना सा हुआ ,
की ज़िन्दगी नहीं है ,खवाबो मैं , जीने के लिए ,

हम तो गैरों से भी करते रहे , ज़ुस्तज़ु फूलों की ,
याद आया ,अपने कम नहीं ,कांटे बिछाने के लिए ,

दुनिया का तो दस्तूर ही है आग लगाने का ,
की 'रत्न ' ने खुद कसर न रखी,अपना घर जलाने के लिए /
"गुप्त रत्न "

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