गुप्तरत्न :वो तेरा ख्याल की जी न सकेगी बिन तेरे "रत्न "

"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "

क्या बताएं दिल मैं क्या -क्या छिपाए बैठे है ,
दिल मैं वो तेरे,  सारे सितम छिपाए बैठे है ll

दिखता है रोशन, मेरा घर बाहर से जमाने को ,
क्या दिखाए अन्दर कितना तम छिपाए बैठे है ll

मलहम भी कैसे लगाएगा ,अब आकर कोई ,
हम भी तो, दिए तेरे सारे ज़ख्म छिपाए बैठे है ll
कितने गम छिपाए बैठे है 

मेरी मुस्कराहट पर फ़िदा है , तो ज़माना  सारा 
देख न पायेगा कोई , कितने गम छिपाए बैठे है ll

वो तेरा ख्याल की जी न सकेगी बिन तेरे "रत्न "
जियेंगे तेरे बिन,अब भी खुदमे दम छिपाए बैठे है ll

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