पर सागर की फ़ितरत कही टिकता नही था।।

"गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं "

गर बिकता तो खरीद लेते हम ,
पर हमने भी वो पसंद किया जो बिकता नही था।।

हाल -ए-दिल बयां भी मुश्किल ही रहा ,
दर्द तो था पर घाव दिखता नही था।

बरकतो की भी बारिश सी रही, 
बढता रहा दर्द घटता नही था ।।

चाहता तो डूब जाता या डुबा देता "रत्न"
पर सागर की फ़ितरत कही टिकता नही था।।

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