सुनने उस एक तराने की लिए ll

"गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं "

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नही स्वरना किसी को दिखाने के लिए

ये जिंदगी चुनी है खुद मैंने,
नही जीना मुझे ज़माने के लिए ll

मैं जो हूँ बस वहीँ हूँ,
नही सवंरना मुझे किसी को दिखाने के लिएll

इतनी आसानी से नही मिलेगी ,
बहुत सफ़र वाकिं है ,मंजिल को पाने को लिए ll
बहुत जलना होगा,2*
खुदको अभी कुंदन बनाने के लिए ll

सीता की तरह पाकीज़गी साबित करें,
नही जी,धरती नही फटेगी यहाँ खुद मैं हमें समाने के लिएll

आदत ये जीत की  लगी क्या मुझको,
लोग जाने क्या-क्या कर जायेंगे अब मुझे हराने के लिए ll

क्यूँ बुला बैठी दुश्मन को दिल मैं,?
दोस्त क्या कम थे?,मुझे सताने के लिए ll

इक शाम की ही तो तलबगार हूँ मैं ,
सुनना है जो,तेरी आवाज़ मैं उस अफ़साने के लिएll
हो जाएँ जिससे तरन्नुम-ए-फिजा ,
बैठी हूँ कब से,सुनने उस एक तराने की लिए ll

बोलूं भी तो झूठ कैसे ?
निगाहें भी तो दे साथ,सच छिपाने के लिए ll
अपने हो या गैर बताऊँ कैसे,?
महीन सा भी फर्क बचा नही अब बताने के लिए ll

तेरी नाराजगी गैरलाज़मी थी,
फिर भी मान ली तेरी हर बात तुझे मनाने के लिएll
बोलना कुछ नही चाहती,
क्यूंकि कुछ नही पास मेरे अब बचाने के लिए ll
शिकायते तो तुमको भी है ,हमको भी,
पर ख़ामोशी बेहतर है अब इस रिश्ते को निभाने के लिएll

बैठी हूँ कब से उस एक तराने के लिए 

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