गुप्तरत्न : गुप्तरत्न : पतझड़ गवाह है,की किसी बाग में हमेशा तो ...

गुप्तरत्न : गुप्तरत्न : पतझड़ गवाह है,की किसी बाग में हमेशा तो ...: गुप्तरत्न : पतझड़ गवाह है,की किसी बाग में हमेशा तो बहार न रही : तेरी "हाँ" की अब में तलबगार न रही , तेरी "न" ही अच्छी है...

"गुप्तरत्न "
"भावनाओं के समंदर मैं "
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