#गुप्तरत्न : इक बार खोना है यूँ, तुममे की खुद को भी खुद पा न सक...

गुप्तरत्न : इक बार खोना है यूँ, तुममे की खुद को भी खुद पा न सक...: इक बार खोना है यूँ, तुममे की खुद को भी खुद पा न सकें, छुप जाएँ तेरी बाहों मैं कुछ यूँ,की किसी को नज़र आ न संकेll ए खुदा क्यूँ ? मैं ही तड़...

"गुप्तरत्न "
"भावनाओं के समंदर मैं "

गुप्तरत्न :यूँ लगूं गले की छोड़ दूँ अपने सीने की आग तेरे सीने में,

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इक बार खोना है यूँ, तुममे की खुद को भी खुद पा न सकें,
छुप जाएँ तेरी बाहों मैं कुछ यूँ,की किसी को नज़र आ न संकेll

ए खुदा क्यूँ ? मैं ही तड़पू  तनहा इस तड़प मैं ,
उनको भी दे मेरी तड़प कुछ यूँ, की फिर मुझे सता न सकें ll

क्यूँ रहे बदनामी का डर ,ये इकतरफा हर घडी,
मुहब्बत मैं हो शरारत यूँ,की वो भी एहसास जुबां से बता न सकें ll

यूँ लगूं गले की छोड़ दूँ अपने सीने की आग तेरे सीने में,
की जले तू भी मेरी ही तरह, फिर किसी को यूं जला न सकें ll

बहुत गुरूर है उसे अपने आप में ,"रत्न"
ला उसे मेरे करीब यूँ,की ए खुदा की दूर फिर मुझसे जा न सकेll

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