इतना रुसवा हुयें उसकी महफ़िल में ,कि डरने लगे अब ,

"गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं "

उडका दिए  है दिल के दरवाज़े ,बंद अब भी नहीं ,
जिस दिन दोगे दस्तक ,खुद, खुद  खुल जायेंगे  ll

बंसत बीता कहाँ अब तलक, बाग़ में ,
सीचों चाहत से ,सूखे पौधे ,फिर खिल जायेंगे ll

दो के  बीच , कभी  तीसरे को मत  रखना  #गुप्तरत्न ,
वो हम तक वैसा न आएगा, जैसा पैगाम आप भिजवाएंगे ll

पी नहीं  कब से, उन  आँखों से शराब ,ए साक़ी,
गैरत की बात है l,कौन सा बिन पिए मर जायेंगे ?ll

लोग चाहते है, हमको पिलाना ,कि हम भी होश खो दे ज़रा ,
इक वो कमबख्त ,जिसको हम देख कर ही होश खो जाएँगे ll

इतना रुसवा हुयें उसकी महफ़िल में ,कि डरने लगे अब ,
आयेंगे रूबरू जब आईने के, तो क्या अपनी सूरत दिखलायेंगे ll

नाराज़गी,न शिकायत न खोने का डर कोई ,आपके लिए ,
जब मेरे हुयें ही नहीं कभी ,तो फिर कैसे खो जायेंगे ll

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