# इतना रुसवा हुयें उसकी महफ़िल में ,कि डरने लगे अब ,

गुप्तरत्न : इतना रुसवा हुयें उसकी महफ़िल में ,कि डरने लगे अब ,: "गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं " उडका दिए  है दिल के दरवाज़े ,बंद अब भी नहीं , जिस दिन दोगे दस्तक ,खुद, खुद  ...

"गुप्तरत्न "
"भावनाओं के समंदर मैं "

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