"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "
गुप्त रत्न 

मेरी तो जुबां काली है , हर बात सदाकत थी ,
संभाला तुम्हे , मेरी कमजोरी नहीं शराफत थी ll

मुहब्बत  होती तो मरती न यूँ , जिंदा रहती ,
बदलनी ही थी एक दिन  ,मैं तो तेरी आदत थी ll

सब कुछ लौटा दूंगी वैसा ही तुम्हें एक दिन ,
ये दर्द सब तेरे ही है ,  मेरे पास तो ज़मानत थी ll

सबकुछ छोड़ बैठी थी , कभी तेरे वास्ते मैं ,
मुहब्बत मेरी ये,  दुनिया के  लिए तो बगावत थी ll

बहुत अच्छे अदाकार हो, तुमने ही कहा था ,
आज भी दिखावा है, कल भी हर बात बनावट थी ll

बिल्कुल नही बदले,आज भी मै ही गलत हूँ ,
इलज़ाम मुझको देना तो,तुम्हारी पूरानी आदत थी ll

रुख बदला तो है , हवाओं का  जिंदगी मैं ,"रत्न "
ये हवाएं भी क़यामत है,वो हवाएं भी क़यामत थी ll

गुप्त रत्न 

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