आपके लिए गुप्त रत्न" भावनाओं के समंदर मैं "

"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "

आता ही नहीं समझना ख़ामोशी को ,
उनको हम समझाएं भी तो क्या ?

उनको एहसास ही नहीं है ,कुछ ,
सीने से यूँ  लग जाएँ भी तो क्या ?

अंधे है इस क़दर गुरुर मैं ,वो 
हम दिल की तड़प बताएं भी तो क्या ?

कुछ नज़र आता नहीं उनको ,
बेचैनी ये हम दिखलायें भी तो क्या ?

जब यकीं ही नहीं हम पर,तो ,
ये किस्सा आगे बढ़ाएं भी तो क्या ?

जब आँखों को ही न पढ़ सकें ,
तो ज़ुबा से हम सच जताएं भी तो क्या?

सोच जब जिस्म तक हो, वहां 
एहसास-ए-दिल समझाएं भी तो क्या ?

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