"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "
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कहाँ है ?बेईमान दुनिया मैं ईमान ढूँढती है 

मिलना मुश्किल है,फिर भी सच्चा इसान ढूँढती है //

जिसका हो सच्चा इकतरफा चेहरा, दिल की बोलें ऐसी जुबान  ढूँढती है//

कोई आकर बस जाएँ ऐसा, खाली घर है अच्छा मेहमान ढूँढती है//

मन के अन्दर शोर बहुत है,खुदकी सुनना मुश्किल है,

सुनकर जिसको तनमन पिघले,ऐसी मधुर तान ढूँढती  है//

सबकी आँखे झूठ बोलती,पढ़ पढ़ के "रत्न" थक गई ,/

नज़रो मैं मिल जाएँ किसी के,वो सच्चा पैगाम ढूँढती है //
गुप्त  रत्न 

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