मंजिल अपनी हिन्दुस्तान
क्यों लड़ रहे हो लोगो,ये क्या कर रहे हो लोगो,/
क्या फिर से चाहते हो वो खून और आंसू लोगो //
वो एक है शक्ति,उसको जानो,पाक दिलो से तुम पहचानो ,
वो है शिव मैं,है पैगम्बर मैं, तेरे मेरे ही अन्दर मैं ,
इस्लाम कहो या रहो सनातन ,पर पहला मज़हब रहे वतन /
ये कैसे समझोगे तुम लोगो ,क्यों लड़ रहे हो तुम लोगो ,
चाहे जाओ काबा कैलाश या मक्का और मदीना ,
मंजिल अपनी हिन्दुस्तान,इसमें ही है मिलकर जीना //
सदियाँ गुज़री इस मिटटी मैं, मातरम है ये लोगो,
ये घर है अपना इसमें कोहराम करो न तुम लोगो
सदियाँ गुज़री लड़ते लड़ते,कितने अपने खोये है ,
फिर भी हमने सिर्फ बीज नफरतो के बोये है //
फिर भी नही समझे और हम लड़ रहे है लोगो
"रत्न" पूछ रही है तुमसे ,क्यों नही समझ रहे लोगो /?/
"गुप्त रत्न "
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