"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "
मुहब्बतों की दुनिया, बिना तेरे कहाँ बसायी थी ,
मैंने बिना तेरे जिंदगी कहाँ बितायी थी ,//

तेरी हमकदम,हमसाया,हमराह ही बनी रही,मुद्दतो,
मैंने अपनी कोई पहचान कहाँ बनायी थी //

तू हाथ पकड़कर रोक लेता,तो अंज़ाम जुदा होता ,
ये दूरियां सिर्फ मैंने कहाँ बनायी थी //

बहुत रोई,बहुत रोई, तुझसे बिछड़ते वक़्त,तूने देखा ही नही
फिर भी तुमसे न मिलने की कसम कहाँ खायी थी //

मैं तो तेरी ही थी,तेरी ही हूँ,तेरी ही रहूंगी ताउम्र यूँ ही ,
तू समझा ही नही,"रत्न" कभी कहाँ परायी थी //
"गुप्त रत्न "

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