"गुप्त रत्न "
" भावनाओं के समंदर मैं "
ईद का इंतज़ार
---------------------------
दिल का मुझको कुछ एतबार नही ,
कहूँ कैसे?की होगा तुझसे प्यार नहीं //
सासों की रफ़्तार,धडकनों की बैचैनी,
कहने लगी अब तो हमको करार नही //
बहुत सता रहे हो इस खेल मैं,
सजा ज्यादा है इतनी तो मैं गुनाहगार नहीं //
चलो देख लो जीत कर,दिल के खेल मैं,
दिल रखते है हम भी मानेगे हार नहीं //
बैठे है,चाँद दिखने की तमन्ना लेके,ए "रत्न "
इतना तो शायद ईद का तुमको भी इंतज़ार नही //
बयाँ और क्या करूँ?दीदारे-ए-चाँद की तमन्ना को,
खुदा कसम,कभी रहा यूँ "ईद" का इंतज़ार नहीं //
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें