"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "

ईद का इंतज़ार
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दिल का मुझको कुछ एतबार नही ,
कहूँ कैसे?की होगा तुझसे प्यार नहीं //

सासों की रफ़्तार,धडकनों की बैचैनी,
कहने लगी अब तो हमको करार नही //

बहुत सता रहे हो इस खेल मैं,
सजा ज्यादा है इतनी तो मैं गुनाहगार नहीं //

चलो देख लो जीत कर,दिल के खेल मैं,
दिल रखते है हम भी मानेगे हार नहीं //

बैठे है,चाँद दिखने की तमन्ना लेके,ए "रत्न "
इतना तो शायद ईद का तुमको भी इंतज़ार नही //

बयाँ और क्या करूँ?दीदारे-ए-चाँद की तमन्ना को,
खुदा कसम,कभी रहा यूँ "ईद" का इंतज़ार नहीं //

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