"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "

बेसब्र होकर तडपा रही है ,बेचिनियां ,
बहकने दो अब मुझे या संभल जाने दो   //

महसूस करने लगे है  आपको हर पल ,
पास आओ,अब मेरे या दूर हो जाने दो  //

मेरे मन मैं भी उठ रहे है,आपकेअन्दर के तूफ़ान ,
    या तो बचा लो ,अब मुझे या डूब जाने दो    //

   मुश्किल है हाल-ए-दिल बयाँ करना यूँ ,"रत्न" का
या तो आवाज़ दोअपनी, मुझे या ख़ामोशी से बताने दो //

आपकी निगाहों ने छीने है होश मेरे ,ए साकी ,
बेखुदी मैं रहने दें,अब मुझे या होश मैं आने दें  //

(बेखुदी --खुद मैं न होना या होश न होना /)
साकी- शराब पिलाने वाला )


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