"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "


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सफ़र कैसा था,आपके  साथ दास्तान मत पूछो ,
सुकून क्या था,मंदिर की घंटी या सुनकर अजान मत पूछो //

बड़ा मुस्तिकिल , प्यारा सा साथ रहा आपका,
छूटा क्यूँ? ये हकीक़त हाल-ए -दिल बयान मत पूछो //

हम भी थे खुश आप भी दुखी न रहे ,
पर चाहत और ज्यादा की,फितरत -ए-इंसान मत पूछो //

आराम भी चाहिए,जाना भी आगे,अब
याद रहेगी, बीते सफ़र की कितनी है थकान मत पूछो //

{मुस्तिकल-पक्का ,रोज रोज होने वाला,
हकीक़त-सच
हाल ए दिल-दिल का हाल
फितरत -ए -इंसान-इंसाने की आदत }
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