"गुप्त रत्न "
" भावनाओं के समंदर मैं
रमजान मुबारक विशेष ........... "गुप्त रत्न"
जिंदगी बीते जैसे महिना हो रमजान,
बोलिए न झूठ,और दिल मैं रखे ईमान //
बोलिए न झूठ,और दिल मैं रखे ईमान //
गुप्त रत्न --भावनायों के समन्दर मैं |
मिलेगी नियमते,करके देखो ये काम,
मायूसी दूर करेगा,कर देगा वो नाम //
मायूसी दूर करेगा,कर देगा वो नाम //
मिलेगी रहमते,आओ छोड़ो झूठी शान ,
तिश्नगी गर दी,तो देगा भी हाथो मैं जाम //
तिश्नगी गर दी,तो देगा भी हाथो मैं जाम //
दे दी गर नौतपा की ये तपिश खुदा ने,
तो दे भी रहा है अब बारिश का पैगाम//
तो दे भी रहा है अब बारिश का पैगाम//
बस रखो पाक दिल,और इसमें ईमान ,
जिंदगी बीते जैसे महिना हो रमजान/
जिंदगी बीते जैसे महिना हो रमजान/
"रत्न" की खवाहिश अच्छा हो हर इंसान,
बोलो न झूठ और दिल मैं रखे ईमान//
बोलो न झूठ और दिल मैं रखे ईमान//
""गुप्त रत्न""
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