आपके लिए गुप्तरत्न मंज़ूर कर भी लूँ तेरे पास आना,पर तुमको भी होगा ये बाताना/

"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "


मंज़ूर कर भी लूँ तेरे पास आना,पर तुमको भी होगा ये बाताना/
पल दो पल की नजदीकियां होगी, या है साथ उम्र भर निभाना //
कौन कहता है रस्मों से फिरो,बनाओ दुशमन जमाना /
पर गुज़ारिश भी ,प्यास बढाकर फिर न हाथ छुडाना//

जुदा मेरी भी चाहत नही, चाहते है थोडा तुम्हे आजमाना
इम्तिहां है सब्र की ,चाहत मेरी भी ये बैचिनिया मिटाना //
चल बैठते है किसी शाम देर तक तन्हाई मैं,/
ख़ामोशी बोलेंगी,कुछ तुम आवाज़ मैं सुनाना //
बेबसी कह दिल की ,की आ गया तुम पर ही /
वरना आशिक कम नहीं मेरे ज़लवो का ज़माना //
निगाहें क्यूँ रुक गई तुम पर ,हम नही जानते /
गर तुम भी न पढ़ सके,तो फ़िज़ूल है समझाना //
आग है नजदीकियां "रत्न" की ,चाहते हो क्यूँ खुदको जलाना //
निगाहो की तपिश कम,नही ,चाहते हो शोले और भड़काना।।
गुप्त रत्न
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