"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "

मेरा लिहाज़ मुझे बोलने न देगा,
बेबसी,! राज-ए-दिल मुझे खोलने न देगा //


किस क़दर बेचैन हूँ,बताऊँ क्या आपको ,
डर !"रत्न" को इज़हार-ए-बयां अंजाम क्या देगा //

धड़कनो और निगाहों को हो सके तो पढ़ लो,
और आपको कोई ,मेरा दिल-ए-पैगाम न देगा //

खामोश रहकर भी देखा एहसासों को भी दबाया ,
तूफ़ान है !,निगाहों का पर्दा इसे छिपने न देगा //

हुस्न रखता है हया का पर्दा भी,
पूछोगे,गर हर बात तो इज़ाज़त न देगा

आ जाओ नज़दीक खामोशी से,
सवाल करोगे ,गर तो ज़वाब ही न देगा //

समन्दर की लहरों का हाल बताऊँ क्या?
हलचल है ,!कश्ती को पार उतरने  न देगा//
"गुप्तरत्न "
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