"गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं " https://m.starmakerstudios.com/share?recording_id=5066859144731600&app_name=sm&share_type=fb&fbclid=IwAR1a8AeICSOmCzhX9_NUYUWX-XzTrFeBPTDCmYl8l7qvYQe0Bg8OMcuSwhI कहीं का रंग भा गया कही का रूप भा गया , कही की छावं भा गई , कही की धुप भा गई , आ गई ज़िंदगी , लो सफर पे आ गई , आ गई ज़िंदगी लो सफर पे आ गई ........... कही का रंग भा ............. सुबह हुयी , शाम आयी , रौशनी भी ढलने लगी , लो उम्मीदों की बस्ती में रात आ गई , आ गई ज़िंदगी लो सफर पे आ गई ............ कहीं का छावं भा ................ मानकर हम तुझे , मंज़िल चलते है , चलते चलते हमसफ़र देख क्या डगर आ गई , आ गई ज़िंदगी लो सफर पे ............. मंज़िलों का पता , न ठिकाने मिले , इतनी धीमी रही मेरी रफ़्तार की , चलते चलते , ज़िंदगी की रात आ गई ..... आ गई