गुप्तरत्न : दोस्त तुम बने नहीं, न रही कभी रंजिशे आपसी ,: बहुत दूर तक आ गए ,अब मुश्किल है वापसी , दोस्त तुम बने नहीं, न रही कभी रंजिशे आपसी , किसी और से दिल लगा भी लेते , पर सूरत ही मिली,न स... दोस्त तुम बने नहीं, न रही कभी रंजिशे आपसी , बहुत दूर तक आ गए ,अब मुश्किल है वापसी , दोस्त तुम बने नहीं, न रही कभी रंजिशे आपसी , किसी और से दिल लगा भी लेते , पर सूरत ही मिली,न सीरत ही आप सी , बहुत तेजी से चलता है ये, सामने से निकल जाता है , वक़्त की चाल ही है, साँप सी बहुत दूर तक आ गए मुश्किल ...... संभाल के, टूट के फिर जुड़ता नहीं , भरोसे की फितरत है, कांच सी जल गए हम रूह तक , छुअन में थी, आपकी आंच सी , दिल लगाते भी कैसे किसी और से न सीरत ही मिली न सूरत ही आप सी , क्या-क्या खो दिया तेरे दर पे आकर , पता न चला ,अब भी ज़ारी है जांच सी , दोस्त हम बन न सकें ,न ही रही रंजिशे आपसी दूर तक आ गए मुश्किल लग रही है वापसी "गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं "