गुप्त रत्न तुमने तो मुझे सदा विकल्पों मैं रखा मैंने तेरे सिवा कोई विकल्प न रखा / तुमसे जो शुरू हुयी वो कायम है अब भी इस कहानी मैं और किरदारों को न रखा / झूठ और झूठ के सिवा तूने कुछ न कहा, मैंने सच की इम्तिहा तक सच को रखा / कैसा खुदा तेरा और क्या इबादत है तेरी एक पाक दिल का भी एहतराम न रखा / शौकीन है तू मीठे ,और मीठी बातो का , मेरा ज़ायका ही कड़वा था,मीठा न चखा / तुझे साहिल प्यारे थे तू किनारे पर चल दिया , मैंने तो तेरी आस पर था, पतवार छोड़ रखा / गुज़ारा था तेरा उन किनारो पर,मेरे बिना भी, इसलिए अब तक खुदको मझधार मैं है रखा / गुप्त रत्न (©,