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हौसला बुलंद है

                        हौसला बुलंद है  खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल , गर हौसला बुलंद है, खुलेंगे दरवाज़े किस्मत के , जो अब तलक बंद है , तेज़ कर आग तू ये ललक की , जो पडी चली अब मंद है , खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल ......... अभी तू सह दर्द ये सफर का , मंज़िल आ जाएँ फिर आनद ही आनंद है , मत घबरा अभी " रत्न "  तू हार  से , देखना खुद ब-खुद हट जाएगी , जीत पर पड़ी जो धुंध है , खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल , गर हौसला बुलंद है ,.................................... गुप्त रत्न 

बालदिवस पर मिलकर ये प्रण लीजिये ,

यूँ तो पूरा साल है तुम्हारा पर आज कुछ यों कीजिये , बालदिवस पर मिलकर ये प्रण लीजिये , इंस्टाग्राम .फेस बुक व्हाट्सअप छोड़कर सभी , एग्जाम आ रहे है , किताबो की और मुख कीजिये , माना तुममे नया जोश है , नवयुग की संतान तुम  पर ये न हो की अपनी संस्कृति का अपमान कीजिये , ये पहचान है हमारी , जड़ें है इसमें , अपनी पहचान के लिए इसका सम्मान कीजिये , हमारे दिन तो ढल गए , है सूरज की तरह , अनुभव है अब हम , शाम की लालिमा जैसे मगर तुममें  नया जोश है , नयी ऊर्जा हो अभी तुम , इस अनुभव से इस ऊर्जा को सही दिशा दीजिये , इस लालिमा से अपने पथ को रोशन तुम कीजिये , ये समय अनमोल ना आएगा दुबारा , सदुपयोग हो इसका , और आनंद लीजिये गुप्त रत्न 

#BAL-DIWASतुम से है परेशान हम ,तुमसे ही प्यार भी

BAL DIWAS  तुम ही को डाट , तुम को फटकार , तुम से ही मनुहार भी , तुम से है परेशान हम , तुमसे ही प्यार भी , यूँ तो दुनिया डूबी , तिहुँ और नीर से , पर सागर को भरते तुम , और तुम ही आधार भी . ये तुम्हारी हंसी , ये शरारतें न भर्ती है घर आँगन सिर्फ , इनसे ही तो है , खिलखिलाता सागर का गलियार भी , तुम से ही कल , तुम से ही है आज रोशन ये सबेरा , खुदको दो सही दिशा , मिटाओ बचे हुए अंधियार भी , कहते हो नित , तुम ही ब्रह्मा , तुम्ही हो विष्णु , तुम ही हो देव: महेश्वरः: पर हिरदय से समझो कभी तो इसका सच्चा सार भी , तुम्हारी सम्पूर्णता सिर्फ कर्तव्यों से ना आएगी हमारे , तुम अपने लिये हमको दो अपने जीवन परअधिकार भी , तुमसे ही सीखा है ,मैंने जीने का नया ढंग  मेरी खुशियो के , बन गए हो तुम हिस्सेदार भी
चलो सुनो शब्दो की महिमा तुम आज , जाने कितने इन शब्दो मैं छुपे है राज , शब्दो से ही है सजते सारे  साज। , शब्दो से ही है , सारे राग , शब्दो ने लिखवायीं रामायण , शब्दो  से लंका पा गया विभीषण , शब्दो ने करवायी महाभारत , इनके बाण न जाएँ अकारथ , शब्दो से मिल जाते है ताज , शब्दो से जा भी सकती है लाज , शब्दो से बन जाते बिगड़े काज , शब्द चाहे तो बना दे तुम्हे मोहताज। ......
क्या करे की अब कुछ समझ आता नहीं , छाया है कोहरा घना ,की कुछ नज़र आता नहीं , चले थे कहाँ ,और पहुंचे है कहाँ ,पर आकर हम, दुरी है बराबर ,लौंटेंगे कैसे ,? आगे चला जा ता नहीं ,..... क्या करे की अब कुछ समझ .... हम करते रहे दिल की और, वह सुनते रहे दिमाग की, की उनने जो किया वह हमसे किया जाता नहीं , हमारी चाहत है अलग और, अलग उनकी प्यास है , की मुहब्बत मैं ,हमसे अब ये समझौता किया जाता नहीं, क्या करे की अब .......... जलाने  के पहले सोचा न था ,की तपन आएगी हम तक भी, आगाज़ तो कर दिया हमने, अज़ाम अब दिया जाता नहीं, हर ज़ख़्म लिया दिल पर खुद अपने हाथों से, की अब इलज़ाम किसी पर दिया जाता नहीं , क्या करे की ........ चाहत है क्या? क्या बताएं हम ए ' रत्न  , की हमसे अब आगे कुछ कहा जाता नहीं, क्या करे की अब कुछ समझ आता नहीं............. गुप्त रत्न